Monday, October 12, 2015

शुभकामनायें


विवाह की चालीसवीं वर्षगांठ पर 


समय के कुंड में.. डलती रही
प्रीत की समिधा
दो तटों के मध्य में.. बहती रही
प्रीत की सलिला
बीत गये चार दशक कई पड़ाव आए
पुहुप कितने भाव से जग में उगाए
भाव सुरभि है बिखरती
नव कलिकायें विहंसती
जिंदगी अब खिल रही है
चल रहा है इक सफर
मीत मन का साथ हो तो
सहज हो जाती डगर !
लें बधाई आज दिल में
स्वप्न की ज्योति जलेगी  
 मिल मनाएंगे दिवस फिर

जब जयंती स्वर्ण होगी !

2 comments:

  1. चालीसबी वर्ष गांठ की बहुत बहुत शुभ कामनाय ।

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  2. स्वागत व आभार मधुलिका जी

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