Thursday, July 11, 2024

लुटाते रहो विश्वास और प्रेम मन का

पुत्र के

जन्मदिन पर

आकाश में उड़ता तुम्हारा जहाज़ 

केवल जहाज़ नहीं है 

यह तुम्हारे दिल की पुकार है  

जो उड़ना चाहता है दूर अंतरिक्ष में 

जिसे नहीं भाते दुनिया के संकरे रास्ते 

जो अपनी अनंत पहचान पाना चाहता है 

जो हवाओं और खुले आकाश के साथ एक हो जाता है 

नये-नये ज्ञान-विज्ञान सीखने को आतुर तुम्हारा मन 

केवल कौतूहल नहीं पाना चाहता 

वह भर जाना चाहता है विस्मय से 

इस ब्रह्मांड की शक्तियों के विभिन्न रहस्यों से 

हर बात को तर्कपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने की तुम्हारी चाह 

केवल शाब्दिक समझ नहीं है 

वह व्यवस्था के प्रति तुम्हारा भीतरी आग्रह है 

जो मिटा देना चाहता है हर अव्यवस्था 

ताकि सुंदर बने जीवन का हर पल,  हर घड़ी 

तुमने भर दिया है हमारे जीवन को उपहारों से 

किताबों और नये से नये साधनों से

बदल रही है जैसे भूमिका 

सन्तान और माता-पिता की 

तुम्हारा अनकहा प्रेम व्यक्त होता है 

उन रसीले फलों की मिठास में 

हर सप्ताह होने वाली तुम्हारी उपस्थिति में 

ऐसे ही यह साथ सजीला बना रहे जीवन संगिनी का 

लुटाते रहो विश्वास और प्रेम मन का 

सभी रिश्तों पर !


Sunday, June 9, 2024

सुखमय हों रस्ते जीवन के

जन्मदिन पर 

ढेर सारी शुभकामनाएँ 


दुबली-पतली एक बालिका 

अति मेधावी, नृत्य साधिका, 

मीठे कोमल स्वर में बोले 

नाचे बनकर कृष्ण-राधिका !


 आँख का तारा माँ-पापा की 

दादी-नानी वारी जातीं, 

गर्व अति दादा-नाना को 

चाचा-चाची, भाई-बहन को ! 


माँ ने सुंदर  केक मंगाया

घर भर गुब्बारों से सजाया,

पापा लाए  लड्डू, पेड़े

सबने मिलकर गिफ्ट दिलाया !

 

सुंदर हो भविष्य तुम्हारा 

स्वप्न सभी पूरें हों मन के, 

यही कामना हम करते हैं 

सुखमय हों रस्ते जीवन के !



९ जून २०२४ 


Monday, June 3, 2024

जीवन क्रम नित आगे बढ़ता



प्रिय दीदी के लिए 

जन्मदिन पर ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ 


झरती है मुस्कान अधर से 

पुष्प विटप से ज्यों झरते हों, 

आश्वासन देता सा स्वर है 

पल-पल प्रेम बरसता उर से !


अनुशासन की शक्ति चलाये  

नहीं प्रमाद, कोई शिथिलता, 

बिना थके या उलझे मन से 

जीवन क्रम नित आगे बढ़ता ! 


पूरे मनोयोग से अपने 

अतिथियों का स्वागत करतीं,

कहीं भी कोई कमी न छोड़ें

नित्य नये व्यंजन बनातीं !


सुखमय उनकी छाया बनकर 

जीजा जी का साथ निभाया, 

हर सुख-दुख में दिया हौसला 

अंतर में विश्वास जगाया !

२ जून २०२४ 

अनिता 


Wednesday, February 28, 2024

निज हाथों पर विश्वास बड़ा

प्रिय आंटी के लिए

ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ 


एक लेखिका कवयित्री हैं 

वाणी प्रखर, तेजस्वी मुखड़ा, 

समर्पिता प्रिया, माँ व नानी

निज हाथों पर विश्वास बड़ा !


कर्मठ अति हैं भक्त ह्रदय से 

क़िस्सों का है एक पिटारा, 

आस-पड़ोस संग ले चलतीं 

अंतर में ख़ासा जोश भरा !


बच्चों के सुख-दुख की भागी 

सदा आशीर्वाद बरसातीं, 

जिससे मिलीं भुला ना पाया  

सत्व भाव से जग हर्षातीं !


याद आ रहीं उनकी बातें 

उनसे मुलाक़ात के वे पल, 

जीवन की संध्या आयी है 

ईश उन्हें दे आत्मिक संबल !


​​



Friday, December 1, 2023

सात सेंचुरी पूर्ण हुई हैं

बड़े भाई के 
सत्तरवें जन्मदिन पर 
ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाओं  के साथ 


अपने घर के इक राजा हैं 
सत्यापित किया निज नाम, 
लें न दें कुछ उधो-माधो से  
रखते अपने काम से काम !

खूब पढ़ाया है बिटिया को 
देख तरक़्क़ी हैं अति प्रसन्न, 
समाज के काम में आते 
सीधा-सादा सा है जीवन !

नहीं शिकायत कोई रब से 
है अंतर में विश्वास बना, 
बड़ों के लिए बहुत सम्मान 
भाई बहनों पर स्नेह घना ! 

जन्मदिवस पर ढेर दुआएँ 
हम सब संग लिए आते हैं, 
सात सेंचुरी पूर्ण  हुई हैं 
गीत बधाई का गाते हैं ! 


Sunday, November 26, 2023

नौंवे दशक में आ पहुँचे हैं

आदरणीय पापा जी के लिए 

९३वें जन्मदिन पर 

ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाओं  के साथ 


नानक संग साझा जन्मदिन 

अंतर में ही रब पाया है, 

किया सार्थक निज जीवन को 

नाम भी सत् का ही गाया है !


सहज भाव से सुबहें होतीं 

धीरे-धीरे सभी क्रियाएँ, 

धीरज का एक सागर भीतर 

मन दिन भर न डिगने पाये !

 

स्वीकारा हर एक बात को 

साक्षी बन कर जग को देखें, 

दुनिया जैसी है वैसी है 

मिट गये भीतर भ्रम भुलेखे ! 


नौंवे दशक में आ पहुँचे हैं 

किंतु जोश अभी भी नूतन, 

सबके लिए हैं प्रेम, दुआएँ 

करे आत्मा भीतर नर्तन !


बना रहे ऐसा बल-संबल 

ज्ञान राह  पर बढ़ते जाएँ, 

अपने सरल सहज जीवन से 

हम सब सुखद प्रेरणा पाएँ ! 

अनिता 

२७ नवम्बर २०२३  





Thursday, October 19, 2023

मुस्कानों का संबल लेकर

भाभी की मधुर स्मृति में 

उनके जन्मदिन पर 

भाई के दिल की बात 


इक मधुर याद सी बसती हो 

मेरे मन के इस प्रांगण में, 

इक मधुर गीत सी गूंज रही 

इस दिल की हर इक धड़कन में !


इस जग में नित्य विचरता हूँ 

मुस्कानों का संबल लेकर,  

जो अब भी दीपों सी जलतीं 

जो वारी थीं तुमने मुझ पर !


एकाकीपन जब खलता है 

तुम हवा के झोंके सी आतीं, 

जब पीड़ा से तन अकुलाया 

हौले से आकर सहलातीं !


जब नाम रूप से जगत बना 

रहे नाम तुम्हारा निकट सदा, 

भले रूप नज़र न आता हो 

हो यहीं कहीं हर पल लगता  !