Monday, October 26, 2015

जन्मदिन की शुभकामनायें

प्रिय भांजे के जन्मदिन पर 

सीधा, सच्चा, ईमानदार
संतोषी व दिल में प्यार,
जीवन कैसे बने बेहतर
करता सदा इसका विचार !

नखरा- वखरा वह न जाने
जी, जी कर सब कहना माने,
हिंदू , मुस्लिम दोनों अपने
मित्र में देता भेद न आने !

इंजीनियर बनने का सपना
पूरा करने का दम रखता,
‘ट्विलाइट’ का है दीवाना
फेसबुक पर साझा करता !

बिग भ्राता का रोल निभाता
सभी बड़ों को खुश खुश रखता,
सचिन हमारा होनहार है

उन्नति करे यही दिल कहता !

Monday, October 19, 2015

श्रद्धांजलि


आज वह हमारे मध्य नहीं हैं पर उनकी यादें दिल के कोने कोने में सजी हैं.

प्रिय भाभीजी के लिये

एक रेलवे कॉलोनी है, मुग़लसराय की गलियों में,
वहीं पली, बढ़ीं, पढीं थीं, ब्याही गयीं बनारस में

भरे घर में आयीं भाभी, सँग भईया के फेरे डाल
देवर-ननद, सास-ससुर सब, हुए बहू पाकर निहाल

सीतापुर, सहारनपुर में, कुछेक बरस बिताए फिर
राजधानी में बना आशियाँ, जनकपुरी जा पहुंची फिर

हरि नगर में चंद दिनों तक, रौनक भी फैलाई थी
स्थायी आवास को लेकिन, कृष्ण पुरी ही भायी थी

हंसमुख और मिलनसार भी, सजना-धजना बहुत है भाता
बातों में होशियार बड़ी हैं, पाकशास्त्र की भी हैं ज्ञाता

दोहरा बदन मगर फुर्तीली, भाभी जिनका नाम सुमन है
प्यारी माँ हैं, प्रिया सजीली, बहुत पुराना यह बंधन है

गीत सुनातीं झूम-झूम के, बड़े भाव से पूजा करतीं
कॉलोनी में सबसे मिलकर, सारे पर्व मनाया करतीं

जन्म दिन फिर-फिर आता है, कुछ भूली सी याद दिलाने
सुख-दुःख तो आते जाते हैं, आये हैं हम बस मुस्काने


Thursday, October 15, 2015

जन्मदिन पर


जन्मदिन पर 

आत्म विश्वास से लबरेज
सधे कदम, सुंदर परिधान
जिंदगी को करीब से देख उपजा सहज ज्ञान
उसे विशिष्ट बनाता है...

वह खुले आसमान में उड़ना चाहती है
अपने पंखों पर भरोसा ही नहीं
आसमान की विशालता का अहसास भी है उसे  

प्रिय की आँखों में देख संतोष का भाव
चहक उठती है वह
और खुश है परिजनों सँग
जीने के नए ढंग सीखकर  
नएपन को जीवन में अपनाकर...

वह है एक चार्टर्ड एकाउंटेंट, प्रोफेशनल...
जो परिजनों से लेकर परिचितों तक की खुशी में
शामिल होने का रखती है जज्बा...
दूसरों के जज्बात का अहसास करता
उसका दिल अति कोमल है..

खिले गुलाब सा मुखडा और
विश्वास से भरी आँखें
याद आती हैं  
जन्मदिन मुबारक हो तुम्हें.... !


Monday, October 12, 2015

शुभकामनायें


विवाह की चालीसवीं वर्षगांठ पर 


समय के कुंड में.. डलती रही
प्रीत की समिधा
दो तटों के मध्य में.. बहती रही
प्रीत की सलिला
बीत गये चार दशक कई पड़ाव आए
पुहुप कितने भाव से जग में उगाए
भाव सुरभि है बिखरती
नव कलिकायें विहंसती
जिंदगी अब खिल रही है
चल रहा है इक सफर
मीत मन का साथ हो तो
सहज हो जाती डगर !
लें बधाई आज दिल में
स्वप्न की ज्योति जलेगी  
 मिल मनाएंगे दिवस फिर

जब जयंती स्वर्ण होगी !