दीदी के लिए जन्मदिन पर
घुंघराले रेशमी
कुंतल, कुछ उलझे कुछ हैं सँवरे
से
मुखड़े पर विश्वास
अभय का, चमके जो सुख के मेकप से
वैरागी मन रह
अलिप्त ही
जग के सारे रोल
निभाता,
न लेना उधो देना
माधो
समय बिना योजना बिताता
!
फक्कड़ तबियत सहज
स्वभाव, खुशियों का इक मिला खजाना
बिना शर्त अब इस
थाती को, अपने चारों ओर लुटाना
प्रकृति का
सुसान्निध्य मिला है
नियमित सांध्य
भ्रमण हैं करती,
यादों को मन के
अलबम संग
नोट डायरी में भी
करतीं !
ज्ञान वचन सुन,
मथकर उनको, निज अनुभव में उन्हें परखतीं
दीपक भाई,
नीरू माँ संग, मुलाकात रोजाना करतीं
ओशो के आश्रम जा
जाकर
यादों का गुलदान
बनाया,
उनकी ख़ुशबू से जब
तब फिर
फेसबुक का वाल
महकाया !
बच्चे जब भी
मिलने आते, पोती, नाती पर बलि जाती
जीजा जी की हर
फरमाइश, तत्क्षण खुश हो पूरा करतीं
सत्य अनकहा एक
असीम
भीतर सबके छिपा
हुआ है
निज शब्दों में
उसे उतारें
सद्गुरू का भी
साथ मिला है
भावों से सजी सुन्दर रचना
ReplyDeleteस्वागत व आभार!
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