पापा जी के लिए
रब पर भरोसा कर लिया
घर से हुए बेघर तब किशोर ही तो थे
छोटी सी उम्र में भी हौसले बड़े थे
काम दिन में कई, की रातों को पढ़ाई
निभाया साथ माँ-बाप का पुत्र बड़े थे
सहा दुःख लाड़ली बिटिया के बिछड़ने का
आँसू उन आँखों के थमते ही नहीं थे
अनुजों को दिया था हर तरह का सहारा
भरोसे ऐसे पाले कि टूटे नहीं थे
पिता का साया उठा माँ की दुआएँ थीं
वह जब गयीं परिवार के मुखिया बने थे
बीच राह में संगिनी भी साथ छोड़ गयी
बच्चों के चेहरे देख ज़ख़्म सी लिए थे
दो भाई, एक बहन ने अंतिम विदा ली
रब पर भरोसा कर लिया बिखरे नहीं थे
आज जब हर ओर केवल माँ ममता मातृत्व कि चर्चा होती है आपने पिता और पितत्व को सराहा है ।
ReplyDeleteसच माँ कि ममता अनमोल है तो पिता के प्रेम और बलिदान को अनदेखा नहीं कर सकते - जो कि हम हमेशा करते है ।
उन्दा सृजन !
आदरणीय , एक सर जी ने कहा मेरी रचना में त्रुटि है पर पुछने पर भी नहीं त्रुटि क्या है?
कृत्या मेरे Blog पर पधारें और ईमानदारी से त्रुटि बताईये ताकि मैं उसे सुधार संकु । धन्यवाद !
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०२ -१२ -२०२१) को
'हमारी हिन्दी'(चर्चा अंक-४२६६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर हृदय स्पर्शी रचना
ReplyDeleteबहुत ही सारगर्भित और भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
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