प्रथम जन्मदिन पर
ओ नन्ही मुन्नी गुड़िया !
ठीक बरस भर पहले तूने
निज आँखें खोलीं दरस दिया !
पतले नाजुक अंग सुकोमल
लालिमा युक्त, परी सी हल्की
स्वच्छ नयन थे, कोमल केश
स्निग्ध स्पर्श, अति अनूठा वेश
लेकिन तब भी नाना-नानी
दादा-दादी को एक अनोखा
निर्मल पावन स्नेह दिया !
कभी जगाया है घर भर को
कभी हँसाया भोलेपन से
मुस्काता है जिसमें जीवन
इतना सा मन, छोटा सा तन
पर तूने अस्त्तित्व से अपने
सारे घर का कोना-कोना
सहज ही जैसे भर दिया !
अब तू छोटे कदम बढ़ाती
तुतलाहट से कभी लुभाती
ना जाने अंतर में कितनी
साध लिए जग में तू आयी
हो स्वप्न सत्य हर माँ-पिता का
तेरे हित जो बुना किया !
भैया कहकर जिसे बुलाती
वह तेरे बचपन का साथी
रोता तुझे देख कब पाता
झट बाँहों में लिए झुलाता
दुनिया से परिचय करवाता
प्रिय खिलौना भी झट दिया !
अभी बोल मुँह से ना फूटे
पर जो तुझसे बातें करती
तू जिसकी धड़कन से परिचित
इक-दूजे को खूब समझती
उस माँ की आँखों का तारा
तुझसे ही जिसका जग सारा
मुस्कानों को देखे तेरी
भर जाता उसका हिया !
बहुत प्यारी रचना, शुभकामनाएँ 💐
ReplyDeleteवाह, बहुत सुंदर
ReplyDeleteनमस्ते.....
ReplyDeleteआप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की ये रचना लिंक की गयी है......
दिनांक 15/05/2022 को.......
पांच लिंकों का आनंद पर....
आप भी अवश्य पधारें....