Thursday, January 15, 2015

कुछ यादें मीठी सी

कुछ यादें मीठी सी


सजा हुआ था रिवाल्विंग स्टेज, दोनों ओर लगी सीढ़ियाँ
धीमे कदमों से चल आते, टिकीं हुईं थीं सब की अंखियाँ I

पुष्पहार लिये हाथों में, एक-दूजे के सम्मुख आये
थम सा गया समय का रथ ज्यों, तारे नभ के लख मुस्काए I

बनी साक्षी सारी सृष्टि, प्रेम के उस अद्भुत क्षण की
गूंज उठा करतल से प्रांगण, जिस पल थी जयमाल डली I

दो आत्मायें बंधी सूत्र में, एक हुए दो जीवन उस पल
फूलों की बरसात हुई जब, था अनुपम वह दृश्य स्वप्निल I

मानो स्वर्ग धरा पर उतरा, दिव्य मिलन होता देवों का
फैले थे रंगीन उजाले, जगमग करता कोना कोना I

हरियाली के बीच सजाया, था मंडप भी शुभ विवाह का
भोजन भी स्वादिष्ट अति, हर एक आयोजन सुंदर था I

पूजा के मंत्रोच्चारण व, मंगलमय सुखमय बेला में
अर्धरात्रि के बाद हुए थे, करके अग्नि को साक्षी फेरे I  

थी दोनों की प्रीत पुरानी, जो अब रंग ले आयी थी
रिश्तेदार, मित्र, सबन्धी, सब के मनों को भायी थी I

भीग गयीं सबकी आंखें, घड़ी विदाई की जब आयी
 रीति निभाने कुल की अपने बहना दुल्हन संग आयी I

माथे पर सिंदूर सजाये, पायल-बिछुए पहने पग में
दुल्हन आयी छमछम करती, शरमाती सी नूतन जग में I

मीठे-मीठे प्रहसन खेले, हँसते हँसते मस्त हुए सब
खाए-पीए, नाचे गाए, मनोरंजित जबरदस्त हुए सब I

सजने संवरने का मौसम था, कोई नहीं रहा था पीछे
लकड़ी के डांसिंग फ्लोर पर, डीजे की धुन पर सब नाचे I

बड़े जतन से गयीं निभायी, दोनों ही के घर में रीति
सगन रस्म सम्पन्न हुई, उस बड़े हाल में खुशी खुशी I

देशी-विदेशी मेहमानों ने, हर पल का आनंद लिया
मेंहदी, स्नान  और घुड़चढ़ी, कितनी रस्मों में भाग लिया I

छोटी-बड़ी लडकियां घर की, मन ही मन में सपने देखें
जैसी शादी इन दोनों की वैसी हो निज किस्मत में I







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