Thursday, March 18, 2021

सीधी, सरल, प्रेममयी वह

जन्मदिन पर शुभकामना सहित 


पढना, लिखना, गुनना, भाता

भीतर की दुनिया की राही,

सत्य नजर से देखे दुनिया,

सुख की नई परिभाषा पाई !

 

अब जब नीड़ हुआ है खाली,

बच्चे कभी-कभी आते हैं,

घर में एक मन्दिर बनाया,

पर्व पड़ोसियों संग मनते हैं !

 

मोह नहीं गहनों, वस्त्रों का

मुक्त हृदय की है स्वामिनी,

मुखड़ा आत्म ज्योति से दमके,

 अधरों पर आनन्द रागिनी !

 

सीधी, सरल, प्रेममयी वह

मिलने वालों का दिल छूती,

तप कर सोना और निखरता,

दर्प, गर्व से सदा अछूती ! 

13 comments:

  1. सीधी सरल प्रेममयी वह, मिलने वालों का दिल छूती । आपके वर्णन ने भी दिल को छू लिया अनीता जी ।

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१९-०३-२०२१) को 'मनमोहन'(चर्चा अंक- ४०११) पर भी होगी।

    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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  3. सादर नमस्कार।

    कृपया १९ को २० पढ़े।

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  4. अब जब नीड़ हुआ है खाली,

    बच्चे कभी-कभी आते हैं,

    घर में एक मन्दिर बनाया,

    पर्व पड़ोसियों संग मनते हैं !



    मोह नहीं गहनों, वस्त्रों का

    मुक्त हृदय की है स्वामिनी,

    मुखड़ा आत्म ज्योति से दमके,

    अधरों पर आनन्द रागिनी !
    बहुत ही सुंदर रचना, सादर नमन, हार्दिक आभार, टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यबाद

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  5. अब जब नीड़ हुआ है खाली,

    बच्चे कभी-कभी आते हैं,

    घर में एक मन्दिर बनाया,

    पर्व पड़ोसियों संग मनते हैं !



    मोह नहीं गहनों, वस्त्रों का

    मुक्त हृदय की है स्वामिनी,

    मुखड़ा आत्म ज्योति से दमके,

    अधरों पर आनन्द रागिनी !
    बहुत ही सुंदर रचना, ढेरों बधाई हो, टिप्पणी करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यबाद

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  6. बहुत खूब । जिसका भी जन्मदिन हो उसको हमारी शुभकामनाएँ

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  7. बहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना आदरणीय अनीता जी, यकिनन ऐसी तो मां ही होती है, मां के जन्मदिन दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं आपको

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  8. बहुत बहुत सुन्दर मधुर रचना |

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  9. बहुत खूबसूरत लिखा है मैम

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  10. पढना, लिखना, गुनना, भाता

    भीतर की दुनिया की राही,

    सत्य नजर से देखे दुनिया,

    सुख की नई परिभाषा पाई !



    अब जब नीड़ हुआ है खाली,

    बच्चे कभी-कभी आते हैं,

    घर में एक मन्दिर बनाया,

    पर्व पड़ोसियों संग मनते हैं !



    मोह नहीं गहनों, वस्त्रों का

    मुक्त हृदय की है स्वामिनी,

    मुखड़ा आत्म ज्योति से दमके,

    अधरों पर आनन्द रागिनी !



    सीधी, सरल, प्रेममयी वह

    मिलने वालों का दिल छूती,

    तप कर सोना और निखरता,

    दर्प, गर्व से सदा अछूती !

    बेहद खूबसूरत रचना अनीता जी, होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं शुभ प्रभात, सादर नमन

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  11. पढना, लिखना, गुनना, भाता

    भीतर की दुनिया की राही,

    सत्य नजर से देखे दुनिया,

    सुख की नई परिभाषा पाई !



    अब जब नीड़ हुआ है खाली,

    बच्चे कभी-कभी आते हैं,

    घर में एक मन्दिर बनाया,

    पर्व पड़ोसियों संग मनते हैं !



    मोह नहीं गहनों, वस्त्रों का

    मुक्त हृदय की है स्वामिनी,

    मुखड़ा आत्म ज्योति से दमके,

    अधरों पर आनन्द रागिनी !



    सीधी, सरल, प्रेममयी वह

    मिलने वालों का दिल छूती,

    तप कर सोना और निखरता,

    दर्प, गर्व से सदा अछूती !
    हृदयस्पर्शी बहुत ही सुंदर रचना, सादर नमन

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  12. आप सभी का हृदय से आभार!

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