प्रिय ब्लॉगर मित्रों, पिछले माह के अंतिम सप्ताह में पिताजी ने देह त्याग दी। आज तीन सप्ताह के बाद ब्लॉग खोला है, पर लगता है जैसे एक युग बीत गया।
उनके स्नेह की दृढ़ डोर से
शब्दों में सामर्थ्य नहीं है
जो परिभाषित कर सकें उन्हें,
सम्मान और स्नेह लुटाकर
उर स्मरण आज कर रहा जिन्हें !
अनुशासन, दृढ़ इच्छा शक्ति
दो स्तंभों पर खड़ा था जीवन,
यम-नियम साधा हर क्षेत्र में
व्यर्थ नहीं व्यय किया कभी क्षण !
एक विशाल वटवृक्ष सा ही
व्यक्तित्तव था पापा जी का,
जिसकी छाया में पलता था
छह भाई-बहनों का कुनबा !
माँ की कमी नहीं खलने दी
ममता सब पर सदा लुटायी,
कठिन श्रम मेहनत के बल पर
क़िस्मत सुंदर स्वयं बनायी !
उनके स्नेह की दृढ़ डोर से
बँधे हुए थे सभी सुरक्षित,
अब लगता यह कहाँ गया है
शांत सहज आनन वह पुलकित !
वर्षों से वे बने हुए थे
रचनाओं के पहले पाठक,
सहज प्रेरणा स्रोत बने हैं
माँ जैसे प्यारे अभिभावक !
बड़े धैर्य से लड़ा उन्होंने
अंतिम युद्ध रोग से अपने,
डाले नहीं कभी हाथियार
जीवन जीया बल पर अपने !
देह का दर्द रोक न पाया
संगीत से लगाव पुराना,
विविध-भारती पर वर्षों से
बड़े भाव से सुनते गाना !
रस-सौंदर्य की परख अति थी
चेहरे पर सौम्यता छायी,
जो भी आया भेंट उसे दी
भक्ति ह्रदय में सदा समायी !
जहाँ कहीं हैं आप सुनेंगे
श्रद्धा सुमन समर्पित करते,
हैं अनंत पर थोड़े से ही
मन के भाव शब्द में भरते !
भावभीनी श्रद्धांजलि
ReplyDeleteह्रदय से आभार !
Deleteश्रद्धा सुमन
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 12 जुलाई 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
बहुत बहुत आभार दिग्विजय जी !
ReplyDeleteभावभीनी श्रद्धांजलि 🙏
ReplyDeleteहार्दिक आभार !
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार !
Deleteबहुत सुन्दर एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व चित्रण। मेरी ओर से उनको भावभीनी श्रद्धांजलि। 🙏🌸
ReplyDeleteहार्दिक आभार !
Deleteस्मृतियों की सुवास मन में समाई रहे!
ReplyDeleteजी, आभार !
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