माँ की पुण्य स्मृति को श्रद्धा सुमन
उन्होंने हमें दिया जनम
पोषण किया कर हर जतन,
उस स्नेह ममता मूर्ति को
कर याद हम करते नमन !
पढ़ती रहीं पढ़ाती भी
बुनती सदा सिखाती भी,
साहस भरा हर श्वास में
वह इक आत्मा स्वतंत्र थीं !
घूमीं बहुत पर्वत चढ़ीं
दीपक जो छह जला गयीं,
पिता संग माँ हर हाल में
तृप्ति का रस पिला गयीं !
हम याद करते हैं उन्हें
शुभ प्रेम अंतर में भरे,
उन्हीं रास्तों पर चल सकें
जीवन से निज दिखा गयीं !
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