पापाजी की प्रथम बरसी पर
विनम्र श्रद्धांजलि स्वरूप
एक बरस संपूर्ण हुआ है
सहज ही याद आ रहे आप,
घर के हर कोने में जैसे
छायी उन्हीं कदमों की छाप!
बड़े मज़े से पेपर पढ़ते
अधलेटे बेड पर लेटे हों,
हौले-हौले उतरें सीढ़ी
सोफ़े पर जाकर बैठे हों !
झाड़न लिए हाथ में अपने
दर-दीवारें साफ़ कर रहे,
आँगन में फैलाते कपड़े
मन ही मन कुछ जाप कर रहे !
कभी दूध देते बिल्ली को
कभी नीर पौधों को देते,
कितनी छवियाँ मन में आतीं
दिखते जिनमें बातें करते !
जीवन की हर एक घड़ी का
आदर किया आपने दिल से,
अन्तर में सुख बसा हुआ था
दिन कटते थे ईश स्मरण में !
ऐसे ही हो जीवन अपना
मरण जहाँ उत्सव बन जाये,
अंतिम श्वासें जब आती हों
हाथ दुआ में तब उठ जायें !

अच्छा लगता है जब कोई यह छोटे-छोटे जीवन के पल याद दिलाता है, जैसे घर के कोने में कदमों की आवाज़, पेपर पढ़ते और सोफ़े पर बैठे हुए पल। मुझे अच्छा लगा कि आपने अपनी कविता में रोज़मर्रा की छोटी-छोटी चीज़ों में भी आध्यात्मिक सुख और आनंद को दर्शाया है।
ReplyDeleteस्वागत व आभार!
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