Sunday, December 4, 2016

प्रीत ही भाषा दिलों की

मुकेश और गीतांजलि के लिए

दशक बीते संग चलते
हमसफ़र हम जिंदगी के,
प्रीत ही भाषा दिलों की
पाठ सीखे बन्दगी के !

इश्क अपना फलसफ़ा है
डोलती नैया मनों की,
घर बना सारा जहाँ यह
तोड़ डालीं  हदें सारी !

रब बसाया दिल में जब से
एक दूजे में झलकता,
बेटियों पर भी लुटाया
प्रेम अंतर में पनपता !

पिता का है हाथ सिर  पर
स्नेह का बन्धन अनोखा,
धार बहती शांति रस की
खुला उर में इक झरोखा !

सुन रहा अस्तित्त्व सारा
दे रहे हम भी दुआएँ,
साथ यूँही चले जन्मों
जिंदगी यूँ मुस्कुराये !



No comments:

Post a Comment