Sunday, January 26, 2025

साहस भरा हर श्वास में

माँ की पुण्य स्मृति को श्रद्धा सुमन 


उन्होंने हमें दिया जनम 

पोषण किया कर हर जतन, 

उस स्नेह ममता मूर्ति  को

कर याद हम करते नमन !


पढ़ती रहीं पढ़ाती भी 

बुनती सदा  सिखाती भी, 

साहस भरा हर श्वास में 

वह इक आत्मा स्वतंत्र थीं !


घूमीं बहुत पर्वत चढ़ीं 

दीपक जो छह जला गयीं, 

पिता संग माँ हर हाल में 

तृप्ति  का रस पिला गयीं  !


हम याद करते हैं उन्हें 

शुभ प्रेम अंतर में भरे, 

उन्हीं  रास्तों पर चल सकें 

जीवन से निज दिखा गयीं !



Wednesday, January 8, 2025

प्रेम का आकाश

विवाह की वर्षगाँठ पर 

असीम है जैसे मेरा प्रेम 
तुम्हारे लिए 
वैसे ही तुम्हारा नहीं होगा 
यह मानने का कोई कारण तो नहीं  
वर्षों का साथ है पर अब भी 
कोई नयी बात पता चल जाती है 
ज़िंदगी रोज़-रोज़ कोई रहस्य 
खोलती जाती है 
अनंत है प्रेम का आकाश
उसके हज़ारों हैं रंग 
एक ही बात को कहने को
 हज़ारों हैं ढंग  
कोई छोटा सा इशारा ही 
काफ़ी है प्रेम के 
किसी न किसी आयाम को 
जतलाने के लिए 
नहीं चाहिये मन को कोई आश्वासन 
साथ होना ही काफ़ी है 
दिल का हाल 
बतलाने के लिए !


Tuesday, December 3, 2024

कितने दिन थे राम के पास

जन्मदिन पर

बीता बरस जन्मदिन आया 

 नदी समय की बहती जाती, 

बड़े मज़े की बात यही है 

हर बार यही धड़कन गाती !


कौन देखता रहकर भीतर 

समय बीतता वही न बीते, 

बरसों में यह तन शिथिल हुआ  

पर मन के घट कभी न रीते !


स्वप्न समान सभी अनुभव अब 

इस पल जाग जरा देखें हम, 

जाता हुआ वर्ष यह कहता 

क्या करना क्या नहीं करो तुम !


हर पीड़ा गहराई देती 

हर आनंद नूतन विश्वास, 

कितने दिन माया ने घेरा 

कितने दिन थे राम के पास !


बदली भरे कई दिन आये 

कितने सूरज चमके नभ में, 

कई अडिग संकल्प भी लिए 

बिटिया की शादी में उनमें !


भीतर गहन मौन भी देखा 

बाहर दुनिया-देश घूमते, 

हर मुश्किल का हल भी सूझा 

मन जब था अंतर उत्सव में !


Thursday, November 28, 2024

घुल मिल गये जैसे नीर-क्षीर

प्रिय पुत्र व पुत्रवधू के लिए

वर्षों बीते पलक झपकते, याद आ रही हैं वह घड़ियाँ, 
संग-संग जीवन का वादा, दिल में फूटीं थीं फुलझड़ियाँ  !

अग्नि देव व अन्य देवों की, साक्षी में वचन दोहराया, 
आशीर्वाद पाया बड़ों का,  रिश्तों में प्रेम लहराया !

क्या अर्थ है मधुर बंधन का, समय के साथ स्पष्ट हो रहा, 
वरमाला डाली थी उस दिन, अहसास हर पल हो रहा  !

सम्मान से  किया था स्वागत, इक-दूजे के परिवारों का, 
घुल मिल गये जैसे नीर-क्षीर,  अब दो मिल गये माता-पिता !

आपस में सहयोगी बन कर, शुभ कार्य सदा मिल कर करते, 
दोनों के जॉब की खूबियाँ,  स्वीकारी हैं पूरे दिल से !

पानी जैसे दो नदियों का, मिलकर एक हुआ बहता है, 
पहले दो थे एक हुए फिर, भेद नहीं कोई रहता है !

भिन्न-भिन्न था कितना कुछ पर। ‘हम’ होते ही हो गया हमारा, 
एक इकाई बन कर रहते, मेरा सब कुछ हुआ तुम्हारा ! 

प्रेम ह्रदय का सदा समर्पित, अहंकार न मध्य में आता, 
पहला दूजे के सुख-दुख में, पूरे दिल से साथ निभाता !

मैत्री का ही नाता पनपे,  एक मना ले दूजा रूठा, 
हँसी सदा झलके मुखड़े पर, कोई बड़ा न कोई छोटा ! 

Monday, September 23, 2024

सच हो जायें सारे सपने

जन्मदिन पर 

ढेर सारी शुभकामनाएँ 


बरसा होगा नीर गगन से

भीगा-भीगा मौसम होगा, 

तुम आयीं थीं जिस दिन जग में  

कितना सुंदर दिन वह होगा !


तुम्हें बधाई इस शुभ दिन की 

यही कामना सदा हमारी, 

मन महके हर दिवस वर्ष के 

खिली रहे बगिया तुम्हारी !


स्वप्न सजे हैं पलकों पर जो 

होंठों पर जो गीत हैं रुके, 

सच हो जायें सारे सपने

गीत सदा आँगन में गूंजे !


तुम दीप शिखा सी शोभित  हो 

हर तरफ़ उजाला बिखराओ, 

सदा हँसो शीतल निर्झर सी  

पीड़ा में भी बस मुस्काओ !


हर वर्ष दिवस यह आता है 

संग लिए बचपन की स्मृतियाँ, 

फिर याद कर दिला जाता है 

बीते जीवन की कुछ कड़ियाँ !


हर वर्ष मनाओ जब यह दिन 

तुम याद हमें भी कर लेना, 

सुंदर बधाइयाँ फूलों से 

पत्तों, सूरज से ले लेना !


Tuesday, September 3, 2024

घर आये थे अरमान लिए

भांजे के लिए जन्मदिन पर 


घर आये थे अरमान लिए 

फिर झेला क़हर बादलों का, 

जब घुस आया घर में पानी 

कोना भी बचा था न सूखा !


भाई-बहनों संग धूम मची 

फिर इक-इक कर सब विदा हुए, 

कुछ वक्त बिताने और साथ 

हम चारों फिर भी यहीं रहे !


माँ पापा की अब उम्र हुई 

देह शिथिल पर दिल अभी जवां, 

हँसते-हँसते हर कष्ट सहा

घर में सदा ख़ुशियों का समाँ !


Friday, August 9, 2024

उनके स्नेह की दृढ़ डोर से


प्रिय ब्लॉगर मित्रों, पिछले माह के अंतिम सप्ताह में पिताजी ने देह त्याग दी। आज तीन सप्ताह के बाद ब्लॉग खोला है, पर लगता है जैसे एक युग बीत गया।



उनके स्नेह की दृढ़ डोर से




शब्दों में सामर्थ्य नहीं है 

जो परिभाषित कर सकें उन्हें, 

सम्मान और स्नेह लुटाकर 

उर स्मरण आज कर रहा जिन्हें !


अनुशासन, दृढ़ इच्छा शक्ति

दो स्तंभों पर खड़ा था जीवन, 

यम-नियम साधा हर क्षेत्र में

व्यर्थ नहीं व्यय किया कभी क्षण !


एक विशाल वटवृक्ष सा ही 

व्यक्तित्तव था पापा जी का,

जिसकी छाया में पलता था

छह भाई-बहनों का कुनबा !


माँ की कमी नहीं खलने दी 

ममता सब पर सदा लुटायी,

कठिन श्रम मेहनत के बल पर 

क़िस्मत सुंदर स्वयं बनायी !


उनके स्नेह की दृढ़ डोर से

बँधे हुए थे सभी सुरक्षित, 

अब लगता यह कहाँ गया है 

शांत सहज आनन वह पुलकित !


वर्षों से वे बने हुए थे 

रचनाओं के पहले पाठक, 

सहज प्रेरणा स्रोत बने हैं

माँ जैसे प्यारे  अभिभावक !


बड़े धैर्य से लड़ा उन्होंने 

अंतिम युद्ध रोग से अपने, 

डाले नहीं कभी हाथियार

जीवन जीया बल पर अपने !


देह का दर्द रोक न पाया

संगीत से लगाव  पुराना, 

विविध-भारती पर वर्षों से

बड़े भाव से सुनते गाना !


रस-सौंदर्य की परख अति  थी 

चेहरे पर सौम्यता छायी,

जो भी आया भेंट उसे दी 

भक्ति ह्रदय में सदा समायी !


जहाँ कहीं हैं आप सुनेंगे 

श्रद्धा सुमन समर्पित करते, 

हैं अनंत पर थोड़े से ही  

मन के भाव शब्द में भरते !