इति
आदि न जिसका इति हो कैसे
इति उसी की जो परिवर्तित
मर कर भी जो शेष रहा है
वही आत्मा है जग पूजित I
प्रिय नाम इति किया सार्थक
सत्य साधिका, मधुर भाषिणी
वर्ण सुनहरा, गहरी आँखें
अल्प वाचिका, पुरी वासिनी I
तेरह बरस की निष्ठा अनुपम
गुरु ज्ञान का करती वितरण
एओल की पूर्ण शिक्षिका
जीवन सत् को किया समर्पण I
बाल्यावस्था थी कोमल जब
संतों के दर्शन करवाए
रामकृष्ण मिशन चलाते
संस्कार पिता से पाए I
कहा किसी ने देख लकीरें
प्रभु के पथ की है गामिनी
किन्तु इति सामान्य बालिका
जग की भी तब अभिलाषिणी I
गुरु दर्शन का अनुभव अतुलित
बैंगलोर गयी विधि सीखने
दिशा बदल गयी तब जीवन की
छोड़ दिए आग्रह सब मन ने I
तब से घूमे नगर नगर में
सारा जग अब मीत बना है
सहज सिखाती सहज ही रहती
इति से मिलना सुख सपना है I
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