Friday, October 29, 2010

सुदेशना

प्रिय सुदेष्णा  के लिये अनगिनत शुभकामनाओं सहित

 अल्पभाषिनी, शांतमना
अधरों पर सहज स्मित रेखा!
संकोची कुछ, पर झलकाती
आत्म बल, जब भी उसे देखा!

पढ़ने की अभिरुचि सुसंस्कृत
कलाकार की नजर है पाई,
हाथों में अद्भुत जादू है
जब कागज पर कृति बनाई I

कठिन साधना की कॉलेज में
नई मंजिल की अब तलाश है,
स्नातक हुई भौतिकी में अब
कर्मक्षेत्र की मन को आश है I

जीवन के कुछ नए पृष्ठ अब
पढ़ने हैं मुंबई जाकर, 
एक और सीढ़ी चढ़नी है
अंतर शक्ति नई जगाकर I

देहली से नाता जब टूटा
दिल थोड़ा घबराया होगा,
एक नया फिर नीड़ बनाने
की हिम्मत मन लाया होगा I

माँ-बाबा, दादी की खुशियाँ
हैं तुमसे हर पल जुड़ी हुईं,
संग सदा तुम उनके रहती
हम से भी न कभी जुदा हुईं I

दुलियाजान की हरियाली को
रिमझिम वर्षा की झड़ियों को,
मन के एक कोने में रखना
संग सखी बीती घड़ियों को I

महानगर की भीड़भाड़ में
कंक्रीट के उस उपवन में,
एमबीए की भागदौड़ में
याद उन्हें कर लेना मन में I

स्मृति सदा जागृत रखना
मन उपवन को सदा हरा-भरा,
श्रम एक दिन रंग लाएगा
नहीं किसी को संदेह जरा I

ढेरों शुभकामनायें ले लो
पुनः सुनहरा पल आया है  
एक नवीन तपस्या का फिर  
जीवन में अवसर आया  है I









No comments:

Post a Comment