Friday, October 29, 2010

दूर देश से दुलियाजान

दूर देश  से दुलियाजान

दूर देश से उड़कर आयीं खिलखिलाती दो लड़कियां
मधुर स्वरों में सुरमयी सरगम गुनगुनातीं सी परियां  

जैसे फूलों के झुरमुट पर मंडराती रंगीन तितलियां
या फिर नीले नीले जल में छपछप करती हुई मछलियां

सुर गूंजते अब तक उनके हरी घास, वृक्षों, पत्तों में
स्वप्नों के से बीते वे दिन रौनक लगा गयीं घर में

गीत सुनातीं पोज बनातीं सारे घर में धूम मचातीं
रंगबिरंगे वस्त्र पहन कर खुशबू की लपटें फैलातीं

अधरों पर लिप ग्लास सजे आँखों में काजल शैडो भी
बेहतरीन परफ्यूम डियो बालों में क्लिप व क्लच भी

यानि की वे सुघड़ बड़ी थीं आँखें उनकी बड़ी-बड़ी थीं
एक सांवली दूजी गोरी पाककला में निपुण बड़ी थीं

स्नेह लुटातीं मिलतीं जिससे बातों में न कोई जीते
याद आ रहे पल वे सारे उनके संग दिन उड़ते बीते

संग आयीं थीं माँ के जो माँ से ज्यादा थी सहेली
एक अनोखी सी डाक्टर, स्वप्निल, प्रेमिल, उत्साही

गालों पर पड़ते हैं जिसके गड्ढे दो नन्हें से प्यारे
बातों में जिसकी मोहकता, भोलापन हर अदा संवारे

सेवा भाव भरा है भीतर स्नेह लुटाती अनजानों पर
ज्ञान दिया बच्चों को दिल से दी भेंट सहज होकर

हारमोनियम पर सुर साधा संगत कर तबले पर थाप
भजन, प्रार्थना मिल कर गाये आँख मूंद छेड़ा आलाप

धर्म और अध्यात्म पे चर्चा ध्यान योग भी खूब किया
अंतर्शक्ति जगाने स्वयं को परम तत्व से चार्ज किया

हरे भरे मैदानों में संग घूमे अनगिन चित्र उतारे
तेलकूप से ओसीएस तक रॉड पम्प के लिये नजारे

चाय बागानों में सर पे उठा टोकरी पत्तियाँ तोड़ी  
बच्चों संग कच्ची पुलिया पर सज उठी बहनों की जोड़ी

घंटी वाले मंदिर में मन्नत मांग आरती सजाई 
और झील में गाते-गाते पैडल वाली नाव चलाई

फूलों वाले रस्ते गुजरे तितलियों संग गुफ्तगू की
जाने कितनी बार निहारा कुदरत की इबादत की

कैरम खेला, बॉनवॉयज भी बैडमिंटन पर हाथ जमाया
प्रातः भ्रमण किया छाते लेकर वर्षा का आनंद उठाया

मन में श्रद्धा व विश्वास प्रतिपल नया सीखने की आस
जीवन में कुछ कर दिखलाना याद दिलाती है हर श्वास







  


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