Friday, October 29, 2010

भुंईया दा

भुइयाँ दा

मन की अलबम के पृष्ठों को, जरा पलट कर देखा आज
उभरा हो सजीव दृश्य वह, गूंजी भीतर वह आवाज I 

पहला बेसिक कोर्स हुआ था, दुलियाजान हुआ रोमांचित
थी शुभो बनर्जी की विदाई, प्रतिभागी सभी थे पुलकित I

गीत आपने इक गाया था, सबके मन को जो भाया था
बंगलोर से आया मेरा दोस्त, दोस्त को सलाम करो I

ए. ओ. एल. का नन्हा अंकुर, आज पनप कर वृक्ष हुआ है
स्नेह जल से सींचा इसको, प्रेम आपने सदा दिया है I

भोला शंकर भोला गाते, कभी द्रवित हो माँ को बुलाते
भाव भरा आपका उर है, मीठे स्वर में भजन सुनाते I

सदगुरु की है कृपा आपपर, जीवन ऐसे सुखमय बीते
हर मुश्किल आसां हो जाये, जग को निज स्वभाव से जीतें I

एक और स्मृति अंकित है, पर्यावरण के प्रति समपर्ण
प्लास्टिक मुक्त हो शहर हमारा, सेवायें की अपनी अर्पण I

जगह-जगह बोर्ड लगवाये, प्लास्टिक के दोष गिनवाए
सोया लेकिन जन मानस है, अब भी न सचेत हो पाए I

लेकिन यह प्रयास आपका, दुलियाजान नहीं भूलेगा
यदि भविष्य में महल बना तो, नींव का पत्थर यही बनेगा I

ई. थर्टी सेवन की यादें, सबके दिल में बसी हुईं
आज विदा की इस बेला में, आंखें भी कुछ नम हुईं I

सदगुरु के प्रकाश में हम सब, पालें भीतर का आकाश
जग से जाएँ उससे पहले, दुखों से पालें अवकाश I






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