Monday, November 12, 2018

तुम दोनों का आना

तुम दोनों का आना


जैसे शीतल पवन झकोरा
सहला जाता.. कुछ दे जाता,
या फिर कोई  झरता झरना
भीनी सी फुहार बरसाता !

विमल प्रेम की धार बही थी  
मधुर मिठाई पकवान संग,
हर मुद्रा हर भाव हृदय का
बना प्रकाश.. भरा था आंगन !

आतिश बाजी से गगन रँगा 
जब गगनदीप उन्मुक्त उड़ा,
नये सुस्वादु व्यंजन, सज्जा
अतिथियों का आनंद बढ़ा,

बच्चों संग मित्र बन खेले
जीता उनको उपहारों से,
सबको एक नजर से देखा
बसा नहीं भेद कभी उर में !

तुम दोनों को प्रेम जोड़ता
ऐसे ही मुस्काते रहना,
ज्यों जन्मों के मीत मिले हों
एक हृदय दो तन हो रहना !

विवाह के बाद प्रथम बार दीपावली के अवसर पर जिनके यहाँ पुत्र और पुत्रवधू का आगमन 
हुआ, यह कविता उन सभी परिवारों को समर्पित है.