बरगद का वृक्ष ज्यों विशाल
नहीं रह सके माँ के बिना
या नहीं रह सकीं वे बिना आपके
सो चले गये उसी राह
छोड़ सभी को उनके हाल....
पूर्ण हुई एक जीवन यात्रा
अथवा शुरू हुआ नवजीवन
भर गया है स्मृतियों से
मन का आंगन
सभी लगाये हैं होड़ आगे आने की
लालायित, उपस्थिति अपनी जताने की
उजाला बन कर जो पथ पर
चलेंगी साथ हमारे
बगीचे से फूल चुनते
सर्दियों की धूप में घंटों
अख़बार पढ़ते
नैनी के बच्चे को खिलाते
मंगलवार को पूजा की तैयारी करते
जाने कितने पल आपने संवारे....
विदा किया है भरे मन से
काया अशक्त हो चुकी थी
पीड़ा बनी थी साथी
सो जाना ही था पंछी को
छोड़कर यह टूटा फूटा बसेरा
नये नीड़ की तलाश में
जहाँ मिलेगा एक नया सवेरा...
(दो वर्ष पहले १८ जून को ससुर जी ने देह त्याग दिया, उसी समय यह लिखा था )