बरगद का वृक्ष ज्यों विशाल
नहीं रह सके माँ के बिना
या नहीं रह सकीं वे बिना आपके
सो चले गये उसी राह
छोड़ सभी को उनके हाल....
पूर्ण हुई एक जीवन यात्रा
अथवा शुरू हुआ नवजीवन
भर गया है स्मृतियों से
मन का आंगन
सभी लगाये हैं होड़ आगे आने की
लालायित, उपस्थिति अपनी जताने की
उजाला बन कर जो पथ पर
चलेंगी साथ हमारे
बगीचे से फूल चुनते
सर्दियों की धूप में घंटों
अख़बार पढ़ते
नैनी के बच्चे को खिलाते
मंगलवार को पूजा की तैयारी करते
जाने कितने पल आपने संवारे....
विदा किया है भरे मन से
काया अशक्त हो चुकी थी
पीड़ा बनी थी साथी
सो जाना ही था पंछी को
छोड़कर यह टूटा फूटा बसेरा
नये नीड़ की तलाश में
जहाँ मिलेगा एक नया सवेरा...
(दो वर्ष पहले १८ जून को ससुर जी ने देह त्याग दिया, उसी समय यह लिखा था )
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ReplyDeleteआँखे भर आयी...
ReplyDeleteयही सच है जीवन का |
ReplyDeleteकाया अशक्त हो चुकी थी
ReplyDeleteपीड़ा बनी थी साथी
सो जाना ही था पंछी को
छोड़कर यह टूटा फूटा बसेरा
नये नीड़ की तलाश में
जहाँ मिलेगा एक नया सवेरा...
श्रद्धांजलि
काया अशक्त हो चुकी थी
ReplyDeleteपीड़ा बनी थी साथी
सो जाना ही था पंछी को
छोड़कर यह टूटा फूटा बसेरा
नये नीड़ की तलाश में
जहाँ मिलेगा एक नया सवेरा...
श्रद्धांजलि
अनीता जी, भाई-बहन पर, माता-पिता पर, बेटे-बेटी पर लगभग हर रिश्ते पर मैंने कवितायेँ पढ़ी. लेकिन ससुर जी पर मैं ने पहली बार कोई कविता पढ़ी है और वो भी इतनी अच्छी! धन्यवाद ...
ReplyDeleteअनीता जी, भाई-बहन पर, माता-पिता पर, बेटे-बेटी पर लगभग हर रिश्ते पर मैंने कवितायेँ पढ़ी. लेकिन ससुर जी पर मैं ने पहली बार कोई कविता पढ़ी है और वो भी इतनी अच्छी! धन्यवाद ...
ReplyDeletesundar manohar
ReplyDeletesundar manohar
ReplyDelete_/|\_ नमन
ReplyDeleteआप सभी का हृदय से आभार !
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