Thursday, May 5, 2022

कभी जगाया है घर भर को


प्रथम जन्मदिन पर

ओ नन्ही मुन्नी गुड़िया !

ठीक बरस भर पहले तूने

निज आँखें खोलीं दरस दिया !

 

पतले नाजुक अंग सुकोमल 

लालिमा युक्त, परी सी हल्की

स्वच्छ नयन थे, कोमल केश

स्निग्ध स्पर्श, अति अनूठा वेश


लेकिन तब भी नाना-नानी 

दादा-दादी को एक अनोखा

निर्मल पावन स्नेह दिया !


कभी जगाया है घर भर को

कभी हँसाया भोलेपन से

मुस्काता है जिसमें जीवन 

इतना सा मन, छोटा सा तन


पर तूने अस्त्तित्व से अपने

सारे घर का कोना-कोना

सहज ही जैसे भर दिया !

 

अब तू छोटे  कदम बढ़ाती

तुतलाहट से कभी लुभाती

ना जाने अंतर में कितनी

साध लिए जग में तू आयी


हो स्वप्न सत्य हर माँ-पिता का  

तेरे हित जो बुना किया ! 


भैया कहकर जिसे बुलाती

वह तेरे बचपन का साथी

रोता तुझे देख कब पाता 

झट बाँहों में लिए झुलाता 


दुनिया से परिचय करवाता 

प्रिय खिलौना भी झट दिया  !

 

अभी बोल मुँह से ना फूटे

पर जो तुझसे बातें करती 

तू जिसकी धड़कन से परिचित

इक-दूजे को खूब समझती


उस माँ की आँखों का तारा

तुझसे ही जिसका जग सारा

मुस्कानों को देखे तेरी 

भर जाता उसका हिया !


3 comments:

  1. बहुत प्यारी रचना, शुभकामनाएँ 💐

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  2. वाह, बहुत सुंदर

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  3. नमस्ते.....
    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की ये रचना लिंक की गयी है......
    दिनांक 15/05/2022 को.......
    पांच लिंकों का आनंद पर....
    आप भी अवश्य पधारें....

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