Friday, October 29, 2010

लावण्या

लावण्या

रंगत गोरी शहद सी बोली
लावण्या दिखती है भोली
तेज दिमाग दिल कलात्मक
उर्वर मेधा है रचनात्मक I

माँ जैसी वह है इमोशनल
तैरे जैसे कोई प्रोफेशनल
फटफट कर सब्जियां काटे
फेसबुक पर सूचनायें बाटें I

पोज बनती झट से सुंदर
गीत फूटते ज्यों हो निर्झर
कभी-कभी झगड़े दीदी से
जुड़ा है गहरा जिससे दिल पर I

एक सी हैं बचपन की यादें
साथ साथ जीने के वादे
पापा से बतियाती है जब
दुनिया को भुलाती है तब I

लावण्या, तुम हो अति प्यारी
नजर लगे न कभी हमारी
इसी तरह लिखती भी रहना
चमके एक दिन कलम तुम्हारी !





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