गुड्डू और फार्ज़ी का घर
जहाँ बेरोकटोक बहती है हवा अपनत्व की,
मित्र परिवार ही बन गए हैं और ....
मित्र परिवार ही बन गए हैं और ....
परिवार का स्वागत मित्रों की तरह किया जाता है
सभी भेद भुलाकर अपना बना लिया है कर्मियों को
जहाँ दो मन एक हो गए हैं
समरसता का संगीत जहां हर पल गूँजता है
जहाँ समृद्धि का साम्राज्य है
भरा रहता है अन्न-जल का भंडार
विशाल है हृदयों का प्राँगण
प्रीत और समझ की बुनियाद पर टिका है जो
उस सुंदर घर पर सदा है कृपा अस्तित्व की
शामिल है दुआ जिसमें हर परिजन की !
उन्होंने अपने को इस क़ाबिल बनाया है कि अस्तित्व की कृपा और परिजनों की दुआ हमेशा उनके साथ है।
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा है आपने दीदी..स्वागत व आभार !
Deleteसुन्दर कविता |आभार आपका
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ReplyDeleteवाह , बहुत खूब !