Thursday, November 28, 2024

घुल मिल गये जैसे नीर-क्षीर

प्रिय पुत्र व पुत्रवधू के लिए

वर्षों बीते पलक झपकते, याद आ रही हैं वह घड़ियाँ, 
संग-संग जीवन का वादा, दिल में फूटीं थीं फुलझड़ियाँ  !

अग्नि देव व अन्य देवों की, साक्षी में वचन दोहराया, 
आशीर्वाद पाया बड़ों का,  रिश्तों में प्रेम लहराया !

क्या अर्थ है मधुर बंधन का, समय के साथ स्पष्ट हो रहा, 
वरमाला डाली थी उस दिन, अहसास हर पल हो रहा  !

सम्मान से  किया था स्वागत, इक-दूजे के परिवारों का, 
घुल मिल गये जैसे नीर-क्षीर,  अब दो मिल गये माता-पिता !

आपस में सहयोगी बन कर, शुभ कार्य सदा मिल कर करते, 
दोनों के जॉब की खूबियाँ,  स्वीकारी हैं पूरे दिल से !

पानी जैसे दो नदियों का, मिलकर एक हुआ बहता है, 
पहले दो थे एक हुए फिर, भेद नहीं कोई रहता है !

भिन्न-भिन्न था कितना कुछ पर। ‘हम’ होते ही हो गया हमारा, 
एक इकाई बन कर रहते, मेरा सब कुछ हुआ तुम्हारा ! 

प्रेम ह्रदय का सदा समर्पित, अहंकार न मध्य में आता, 
पहला दूजे के सुख-दुख में, पूरे दिल से साथ निभाता !

मैत्री का ही नाता पनपे,  एक मना ले दूजा रूठा, 
हँसी सदा झलके मुखड़े पर, कोई बड़ा न कोई छोटा ! 

No comments:

Post a Comment