जन्मदिन पर
बीता बरस जन्मदिन आया
नदी समय की बहती जाती,
बड़े मज़े की बात यही है
हर बार यही धड़कन गाती !
कौन देखता रहकर भीतर
समय बीतता वही न बीते,
बरसों में यह तन शिथिल हुआ
पर मन के घट कभी न रीते !
स्वप्न समान सभी अनुभव अब
इस पल जाग जरा देखें हम,
जाता हुआ वर्ष यह कहता
क्या करना क्या नहीं करो तुम !
हर पीड़ा गहराई देती
हर आनंद नूतन विश्वास,
कितने दिन माया ने घेरा
कितने दिन थे राम के पास !
बदली भरे कई दिन आये
कितने सूरज चमके नभ में,
कई अडिग संकल्प भी लिए
बिटिया की शादी में उनमें !
भीतर गहन मौन भी देखा
बाहर दुनिया-देश घूमते,
हर मुश्किल का हल भी सूझा
मन जब था अंतर उत्सव में !
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