Sunday, July 27, 2025

अंतिम श्वासें जब आती हों

पापाजी की प्रथम बरसी पर 

विनम्र श्रद्धांजलि स्वरूप 


एक बरस संपूर्ण हुआ है 

सहज ही याद आ रहे आप, 

घर के हर कोने में जैसे 

छायी उन्हीं कदमों की छाप! 


बड़े मज़े से पेपर पढ़ते 

अधलेटे बेड पर लेटे हों, 

हौले-हौले उतरें सीढ़ी 

सोफ़े पर जाकर बैठे हों !


झाड़न लिए हाथ में अपने 

दर-दीवारें साफ़ कर रहे, 

आँगन में फैलाते कपड़े 

मन ही मन कुछ जाप कर रहे !


कभी दूध देते बिल्ली को 

कभी नीर पौधों को देते, 

कितनी छवियाँ मन में आतीं 

दिखते जिनमें बातें करते !


जीवन की हर एक घड़ी का 

आदर किया आपने दिल से, 

अन्तर में सुख बसा हुआ था 

दिन कटते थे ईश स्मरण में !


ऐसे ही हो जीवन अपना 

मरण जहाँ उत्सव बन जाये, 

अंतिम श्वासें जब आती हों 

हाथ दुआ में तब उठ जायें !


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