आज वह हमारे मध्य नहीं हैं पर उनकी यादें दिल के कोने कोने में सजी हैं.
प्रिय भाभीजी के लिये
एक रेलवे कॉलोनी है, मुग़लसराय की गलियों में,
वहीं पली, बढ़ीं, पढीं थीं, ब्याही गयीं बनारस में
भरे घर में आयीं भाभी, सँग भईया के फेरे डाल
देवर-ननद, सास-ससुर सब, हुए बहू पाकर निहाल
सीतापुर, सहारनपुर में, कुछेक बरस बिताए फिर
राजधानी में बना आशियाँ, जनकपुरी जा पहुंची फिर
हरि नगर में चंद दिनों तक, रौनक भी फैलाई थी
स्थायी आवास को लेकिन, कृष्ण पुरी ही भायी थी
हंसमुख और मिलनसार भी, सजना-धजना बहुत है भाता
बातों में होशियार बड़ी हैं, पाकशास्त्र की भी हैं
ज्ञाता
दोहरा बदन मगर फुर्तीली, भाभी जिनका नाम सुमन है
प्यारी माँ हैं, प्रिया सजीली, बहुत पुराना यह बंधन
है
गीत सुनातीं झूम-झूम के, बड़े भाव से पूजा करतीं
कॉलोनी में सबसे मिलकर, सारे पर्व मनाया करतीं
जन्म दिन फिर-फिर आता है, कुछ भूली सी याद दिलाने
सुख-दुःख तो आते जाते हैं, आये हैं हम बस मुस्काने
यादें ताज़ा करती खूबसूरत रचना.....
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDelete