जन्मदिवस पर शुभकामनाओं सहित
चिरपरिचित लौह द्वार
छोटा सा लॉन और हरी घास (जिस पर बिखरे
ताजे झड़े, सूखे, पीले पत्ते
एक कलाकृति का आभास देते हैं)
से गुजरकर भव्य बैठक और
सभी सुविधाओं से सज्जित रसोईघर
चिप्स, अखरोट व फलों से करती स्वागत
देखते ही देखते वह
व्यंजनों से सारी मेज सजा देती हैं
पिछला बरामदा है गवाह चाय की प्यालियों का
जब चलता है धाराप्रवाह सिलसिला बातों का
नाशपाती, लीची, अनार व अमरुद के वृक्षों से
छन-छन आती है हवा
नीचे सुंदर टाइल्स से सजा आंगन का फर्श
जो हवा के हल्के से झोंके से भर जाता है
बौर और नन्हीं पत्तियों से
इसे पार कर दायें व बाएं दो बगीचे
एक में लगे ईख के झुण्ड मन मोहते है
और वे उम्र व श्वेत वस्त्रों की परवाह किये बिना
अपने हाथों से उन्हें तोड़
दराती से स्वच्छ कर थमाते हैं
साथ ही आ जाती है ऊष्मा उनके अंतर की
तभी नजर आते है वृक्षों पर कूदते-फांदते वानर
शाक वाटिका में ऊधम मचाते
कंदमूल उखाड़ खाते
चाहते हैं आज मधुर शर्करा ईख की भी
उनके साथ बाँट कर खाईं
उस दिन ईख की मीठी गनेरियां
संध्या रहते गए टहलने
बड़ा सा अहाता और ढेरों कमरे
कमरों के अंदर से खुलते कमरे
देहरादून में है उनकी जागीर
सुबह-साँझ मंदिर में दियाबाती कर
भजन की स्वरलहरी का गुंजाना
अतिथियों को विदा करना प्रेम से
मन के पटल पर अंकित हो गया है...
चांदी से चमकते केशों में झलकता है एक ठहराव
और परिपक्वता
आँखों में स्नेह उन मजबूत कंधों के लिये
जो उठा सकें उत्तरदायित्व
इस मिल्कियत का जिसकी नींव उन्होंने रखी है...
No comments:
Post a Comment