पिताजी के लिए जन्मदिन पर
उम्र हुई, तन करे
शिकायत
कभी-कभी मन भी हो आहत,
लेकिन आत्मज्योति प्रज्वलित है
दिल में बसी ईश की चाहत !
अब भी दिनचर्या
नियमित है
ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाते,
पीड़ा हँस कर सहना आता
औरों को भी राह दिखाते !
प्रभु भजन से सुबह
सँवरती
दिन भर ही अध्ययन चलता है,
सुर संगीत का साथ पुराना
जिससे संध्या काल ढलता है !
संतानों को स्नेह
बांटते
नाती-पोती संग मुस्काते,
निज नाम सार्थक करके
सदा सहाय बन कर रहते !
नानक ने जो राह
दिखाई
सदा उसी पर चले हैं आप,
जन्मदिन पर लें बधाई
हमें आप पर है अति नाज !
कभी-कभी मन भी हो आहत,
लेकिन आत्मज्योति प्रज्वलित है
दिल में बसी ईश की चाहत !
ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाते,
पीड़ा हँस कर सहना आता
औरों को भी राह दिखाते !
दिन भर ही अध्ययन चलता है,
सुर संगीत का साथ पुराना
जिससे संध्या काल ढलता है !
नाती-पोती संग मुस्काते,
निज नाम सार्थक करके
सदा सहाय बन कर रहते !
सदा उसी पर चले हैं आप,
जन्मदिन पर लें बधाई
हमें आप पर है अति नाज !
हमारी ओर से भी उन्हें जनमदिन की बधाई अनीता जी । आपकी कविता से बेहतर उपहार उन्हें नहीं मिला होगा आज ।
ReplyDeleteआदरणीया अनिता जी, आपके पिताजी को जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएँ!(बिलटेड) आपने अपनी कविता में बहुत से सुन्दर पलों को समेटा है।-- ब्रजेंद्रनाथ
ReplyDeleteबहुत बहुत सुंदर रचना, सयाने लोगों की बात कुछ और ही होती हैं, सबको संग लेकर चलना, उनका ध्यान रखना, उनकी चिंता करना , परिवार को जोड़ कर रखना, समय की कीमत को समझना,स्नेह से बांध कर रखना, अपनी सूझ - बुझ से सबकुछ संभाल कर रखना, ये सभी आसान नहीं होता है, फिर भी ये आसानी से कर जाते है ,इसके लिए बहुत धीरज और हिम्मत चाहिए, बहुत अच्छा लगा पढ़कर, मन को छू गई बाते, ऐसे लोग हमारे लिए पूज्यनीय होते है, पिताजी को जन्मदिन पर ढेरों बधाइयाँ, प्रणाम, हार्दिक शुभकामनाएं अनीता जी
ReplyDeleteआप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहा भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
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